Thursday, October 11, 2007

झुगिगयों तक पंहुचे हाई-टेक हेल्थ सुविधाओं की बयार



इसमें कोई शक नहीं है कि भारत एक अनूठा देश है। यह दुनिया को न सिर्फ सबसे यादा डॉक्टर (३0 हजार मेडिकल सीटें) बल्कि नर्स (अकेले बंेगलूर में ही तकरीबन ९00 नर्सिग स्कूल एवं कॉलेज हैं) और मेडिकल तकनीशियन भी देता है। अमेरिका से बाहर भारत में ही सबसे यादा यूएस एफडीए से मान्यता प्राप्त फार्मास्युटिकल्स कंपनियां हैं। मौजूदा क्षमता के लिहाज से, भारत की कंपनियों में इतनी कुव्वत है कि अपने दम पर समूची दुनिया भर के लिए दवाएं तैयार कर सकती हैं, बशर्ते उन्हें एेसा करने की अनुमति दी जाए तो। जाहिर है, एेसी अनुमति उन्हें नहीं दी जाएगी, क्यों..? यह एक अलग विषय है।

लेकिन जब बात स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने की आती है तो भारत दुनिया का नेतृत्व करता नहीं नजर आता। आज इंसानी शरीर पर सबसे यादा चिकित्सीय प्रक्रियाएं अमेरिका में की जा रही हैं। अगर आप केवल हार्ट सर्जरी की ही बात करें तो दुनियाभर में औसतन हर साल ६.५ लाख दिलों के ऑपरेशन होते हैं और जिसमें से ४.५ लाख अकेले अमेरिका में अंजाम दिए जाते हैं। बाकी पूरी दुनिया मिलकर भी महज दो लाख ऑपरेशनों को अंजाम दे पाती है। भारत में हर साल २५ लाख हार्ट सर्जरीज किए जाने की दरकार होती है लेकिन हो पाती हैं केवल ८0 हजार। इसी तरह इंसानी शरीर पर अन्य चिकित्सीय प्रक्रियाओं की भी कमोबेश यही हालत है। तो सवाल यह उठता है कि आखिर अगले पांच वर्षो के भीतर भारत इस अंतर की भरपाई कैसे करने वाला है?

भारत में विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने की राह में सबसे बड़ा रोड़ा अधिकतर लोगों द्वारा इस पर आने वाले खर्च को वहन करने की ही कुव्वत न होना है। यह भी सच है कि अगर अमेरिका में भी हेल्थ इंश्योरेंस प्रोग्राम न होता तो यादातर अमेरिकनों में भी इतनी माली कुव्वत न हो पाती कि वह अपनी उंगली का एक नाखून तक उखड़वा पाते, हार्ट सर्जरी तो बहुत दूर की बात है। चूंकि यादातर विकसित देशों ने खुद को इस तरह से व्यवस्थित किया है और हेल्थ इंश्योरेंस के जरिए एक कारगर हेल्थकेयर सिस्टम अपने यहां लागू किया है कि यादा से यादा लोग इनका खर्च उठाने में समर्थ हो जाते हैं।

चार साल पहले, नारायण हृदयालय और कर्नाटक स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटी ने मिलकर यशस्विन नाम से एक माइक्रो हेल्थ इंश्योरेस कार्यक्रम की शरुआत की थी। इस इंश्योरेस कार्यक्रम से यह बात साबित हो गई थी कि मात्र पांच रुपए महीने खर्च करके लाखों की तादाद में गरीब किसान किसी भी तरह की सर्जरी के खर्च को ङाेल सकने की सामथ्र्य पा सकते हैं, जिसमें कि हार्ट सर्जरी भी शामिल है और वह भी बिल्कुल मुफ्त। आज, स्कीम की शुरुआत के चार साल गुजरने के बाद, जहां एक ओर अब तक तकरीबन २४ लाख किसान इस स्कीम से पहले ही फायदा उठा चुके हैं, वहीं दूसरी ओर यशस्विनी से मिलती-जुलती कई स्कीमों की शुरुआत कई और रायों में भी हो गई है। इन्हीं में से एक है आरोग्य श्री, जिसे आंध्र प्रदेश सरकार ने शुरू किया है। इसके जरिए राय के तीन जिलों में गरीबी रेखा (बीपीएल) से नीचे आने वाले कार्डहोल्डरों को हर तरह की सर्जरी का खर्च वहन करने की क्षमता मुहैया कराई जाती है।

पश्चिम बंगाल में भी ग्रामीण स्कूलों के लगभग चार लाख टीचरों के लिए एक बेहतरीन हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम है। हर टीचर को स्वास्थ्य खर्चे के लिए हर माह १00 रुपए दिए जाते हैं, जिसमें वह एंटीबायोटिक के एक कोर्स पर आने वाला खर्च भी नहीं उठा सकते। लेकिन अब पश्चिम बंगाल सरकार और नेशनल इंश्योरेंस कंपनी ने मिलकर टीचर के समूचे परिवार को १.६ लाख रुपए मासिक तक का हेल्थ कवर मुहैया करा दिया है। इसके लिए टीचर को महज १00 रुपए मासिक ही देने होते हैं। बिना किसी अतिरिक्त खर्चे के और महज एक कदम उठाने से लगभग २0 लाख नौकरीपेशा लोगों को बड़ी से बड़ी सर्जरी और चिकित्सा के खर्चे को ङाेल सकने की सामथ्र्य दे दी गई।

चंद दिनों पहले, मेरी श्रीमती जी जब एक माल के सामने से पैदल गुजर रही थीं तो उनकी नजर एक भिखारी पर पड़ी, जो कि अपने चेहरा ढंक कर भीख मांग रहा था। उन्हें उत्सुकता हुई कि आखिर उसने चेहरा क्यों ढंक रखा है, वह उसे थोड़ा से नजदीक से देखने पहुंच गईं तो खुलासा हुआ कि वह भिखारी एक हाथ से मोबाइल छिपाकर किसी से बातें करने के साथ-साथ दूसरे हाथ को फैलकर भीख मांग रहा था। इस नजारे की तार्किक व्याख्या भारत में मौजूद है और मोबाइल फोन होना यहां अब आम बात है। एक जमाने में फोन की सुविधा को ही तरसते इस देश में आज आधुनिक से आधुनिक मोबाइल फोन हैं, कभी रेडियो की आस जोहते इस मुल्क में सैकड़ों चैनलों से लैस रंगीन टीवी के रंग बिखरे हैं। इसी तरह तकनीकी और आर्थिक हथियारों से की मदद से, जीवन की मूलभूत जरूरतों मसलन स्तरीय स्वास्थ्य सुविधाओं को भी हैसियत के पैमाने से अलग किया जाना चाहिए। यहां तक कि ङाुग्गी में रहने वाले किसी शख्स के लिए भी हाई-टेक स्वास्थ्य सुविधाओं का फायदा उठाना आम बात हो, जिन्हें स्मार्ट कार्ड के इस्तेमाल से इन सुविधाओं तक अपनी पहुंच बनाने की सामथ्र्य देनी चाहिए।

अगर इकाई के तौर पर देखें तो गरीबशख्स बेहद कमजोर नजर आता हैलेकिन अगर इनकी सामूहिक तादादमें इन्हें देखें तो यह बेहद मजबूतताकत हैंदुनिया में केवल सरकारोंके पास ही यह चमत्कार करने कीसामथ्र्य होती है, जिसके जरिए वहएेसे सुनियोजित इंतजाम कर सकेंकि एक पैसा भी खर्चना पड़ेमाइक्रो हेल्थ इंश्योरेंस इसका एकबेहतरीन उदाहरण हैमुङाे पूरायकीन है कि सरकार हेल्थ इंश्योरेंससेवा मुहैया कराने की भूमिका मेंउतरेगी, बजाय स्वास्थ्य सेवा देनेवाली संस्था केजब एेसा होगा- और इसके लिए नीतिगत बदलाव कीजरूरत पड़ेगी- यह देश रहने के लिएएक बेहतरीन जगह बन जाएगा

डॉ. देवी शेट्टी

चेयरमैन, नारायण हृदयालय

बेंगलूर

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