Saturday, October 6, 2007

काश कायम रहे सर्विस सैक्‍टर का ये जलवा


१९४७ में राजनीतिक आजादी मिलने के साथ, भारत को विरासत में एेसी अर्थव्यवस्था मिली, जो २00 साल पुरानी थी। तकरीबन ५0 साल लग गए, इसमें गंभीर आर्थिक सुधारों को अमल में लाने और इसे आर्थिक आजादी की शक्ल देने में। आज, वही देश जिसे कभी ‘सुस्त हिन्दू विकास दर’ वाला देश करार देकर दुनिया ने खारिज कर दिया था, सेवा क्षेत्र की महाशक्ति बनने की राह पर चला जा रहा है। आज, भारतीय लोगों का सम्मान पूरी दुनिया करती है, उनके श्रम के लिए और फाइनेंस, तकनीक, मेडिसिन और ज्ञान जैसे पेशों और क्षेत्रों में उनकी दक्षता के लिए। आज, भारतीय लोग फिर अपनी मातृभूमि की ओर वापसी कर रहे हैं, अंतरराष्ट्रीय जगत से मिल रहे लुभावनी पेशकशों को लात मारकर।
विकासशील देशों की पहचान तभी से होने लगती है, जब दुनिया उस देश के लोगों की तरफ ध्यान देने लगे और उन्हें सम्मान दे। यही पहचान उस देश के लोगों के लिए आत्मविश्वास की शक्ल में तब्दील होकर कामयाबी की नित नई कहानियों को पनपने का मौका देती है। उत्तर विश्व युद्ध काल के जर्मनी और जापान, १९८0 के दशक का अमेरिका और १९९0 के दशक के चीन, इस बात के जीवंत उदाहरण हैं कि लोगों के अंदर पनपने वाले आत्मविश्वास और गौरव की भावना ने उन देशों को जन्म दिया, जिन्हें आज ग्लोबल इकॉनमी का नेतृत्व ही हासिल हो गया। एेसे ही गौरव की भावना चंद बरसों से भारत में भी साफ तौर पर नजर आ रही है।
भारत के विकास की कहानी को तीन परंपरागत सूरतों में देखा जा सकता है- बढ़ता शहरीकरण, छोटे कस्बों व ग्रामीण भारत में होता अहम विकास और वसुधैव कुटुंबकम की भावना। ढांचागत विकास और शिक्षा पर दिए जा रहे खासे ध्यान ने भी भारत को दुनिया की १२वीं आर्थिक शक्ति बनने में अहम भूमिका निभाई है।
लेकिन भारत के विकास की कहानी में सबसे बड़ी भूमिका सेवा क्षेत्र ने निभाई है, जिसने अपने को खुद ही उस क्रांतिकारी शक्ल में बखूबी ढाला है, जिसमें आज कारोबार को अंजाम दिया जा रहा है।
सेवा क्षेत्र के विराट सागर में तीन बार बड़ी लहरों ने उफान मारा है-
-१९९0 के दशक में, सॉफ्टवेयर सेवाओं की लहर ने दुनिया में भारत की छवि को ही बेहतरीन शक्ल देने का कमाल कर दिखाया।
-२00२ में, टेलीकॉम सेवाओं की लहर के जरिए, उद्योग ने ८0 फीसदी विकास की लंबी छलांग मारकर इस क्षेत्र में दुनिया के हर बड़े खिलाड़ी की निगाहें अपनी ओर करने की कामयाबी हासिल की।
-२00५ से, हम वित्तीय सेवाओं में उफान मारती लहरों के गवाह बन रहे हैं, जिसमें दुनियाभर के दिग्गज खिलाड़ी भारत की ओर भागते नजर आ रहे हैं और भारतीय मल्टीनेशनल कंपनियां दुनिया जीतने की मुहिम में जुटी हुई हैं।
हालांकि भारत को अभी और दूर, बहुत दूर जाना है, इससे पहले कि वह खुद को दुनिया के फाइनेंशियल बाजार का नेतृत्व करने की भूमिका में देखने लायक माने। इस बात के मायने समङाने के लिए, इस बात पर गौर फरमाइए कि चीन के टॉप तीन बैंक पिछले चंद बरसों में दुनिया के टॉप १0 बैंकों की लिस्ट में शामिल हो चुके हैं। यह एेसा कमाल है, जिसके बारे में आज के पांच साल पहले कल्पना करना भी संभव नहीं था। आज, चीन के तीसरे सबसे बड़े बैंक की बाजार पूंजी भी भारत के समूचे लिस्टेड फाइनेंशियल क्षेत्र की संयु्क्त पूंजी से कहीं यादा होगी! इसका अर्थ साफ है कि भारत के कई वित्तीय क्षेत्रों को टॉप लीग में शामिल होने की सख्त जरूरत है, अगर भारत वाकई इस क्षेत्र में नेतृत्व की ख्वाहिश रखता है तो।
इन लहरों के अलावा इसे नया आकार देने वाली एक चौथी लहर भी है- वह है इन्फ्रास्ट्रक्चर की। इनन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश की जरूरत कृषि, मैन्युफैक्चरिंग और सेवा जैसे तीन मूलभूत क्षेत्रों को विकास के अवसर मुहैया कराने के लिहाज से अहम है। साथ ही, भारत को इस बात को भी समङाना होगा कि जब हम नई-नई लहरों की तलाश कर रहे हों तो इस दौरान पुरानी लहरों के उफान में कोई कमी न आए।
उसे यह भी समङाना होगा कि नागरिक समाज की नींव को भी और मजबूत करने की जरूरत है क्योंकि इस विकास में प्रकृति को शामिल किए जाने के साथ-साथ इसके फायदे समाज के हर तबके तक पहुंचाने की भी जरूरत है। इसमें नागरिक सुविधाओं मसलन, शिक्षा, सैनीटेशन, कानून-व्यवस्था आदि पर खास ध्यान देना भी शुमार है। विकास तब भी खोखला रहेगा, जब तक कि इसमें सामाजिक न्याय का तत्व शामिल न हो।
भारत को यह अहसास करना होगा कि जब हवाओं का रुख उसकी ओर है तो उस समय आत्मविश्वास व अंतिम सत्य समङाने की भूल और उत्साह व मूर्खता में बाल बराबर ही अंतर रह जाता है। इसीलिए यह जरूरी है कि हम अपना ध्यान अधूरे कामों की ओर लगाएं बजाय इसके कि जीत की खुशी में खुद ही पीठ थपथपाने में जुट जाएं। भारत तो अभी जागा है, लेकिन इस ‘हाथी’ को अभी नृत्य करने की दरकार है।
उदय कोटक
(उदय कोटक, उपाध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक, कोटक महिंद्रा)

No comments: